Munshi Premchand Biogaphy in Hindi |
जल्द जानकारी
नाम: धनपत राय (Dhanpat Rai)
जन्म: 31 जुलाई 1880,
मृत्यु: 8 अक्टूबर, 1936 (उम्र 56)
जन्म स्थान: बनारस (अब वाराणसी)
मौत का स्थान: बनारस
लेखक नाम (Pen Name): मुंशी प्रेमचंद और नवाब राय
पेशा: लेखक और उपन्यासकार
बीवी: शिवरानी देवी
बच्चे: अमृत राय और श्रीपथ राय
प्रेमचंद जी की जीवनी हिंदी में: Premchand Biography in Hindi
Premchand Biography in Hindi: दोस्तों मुंशी प्रेमचंद एक ऐसे लेखक जिन्होंने अपनी कहानियों के ज़रिये ब्रिटिश सरकार की नाख में दम कर दिया|
कहाँ जाता है की उनकी कहानियां इतनी प्रभावशाली होती थी की एक बार ब्रिटिश सरकार ने उनके हाथ तक कटवाने का प्रयास किया ताकि वह आगे कभी लिख न सके|
मुशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया सोज़े वतन (Soje Watan) उपन्यास (Noval) इतना ज़बरदस्त साबित हुआ की ब्रिटिश सरकार ने उसकी 500 कापियां जला दी थी|
तो दोस्तों बने रहिएगा हमारा साथ प्रेमचंद (Premchand) की इस hindi biography में बहूत ही लाजवाब कहानी है इनकी|
कोन थे मुंशी प्रेमचंद?
दोस्तों प्रेमचंद जी का असली नाम धनपत राय था| वह एक उपन्यास लेखक (Noval Writer), कहानीकार (Story writer) और एक नाटककार (Dramatist) थे जो की बीसवीं सदी की शुरुआत के प्रमुख हिंदी लेखकों में गिने जाते है|
जैसा की आप सब जानते है 20वी सदी के शुरुआत में हमारे देश में छूआछूत, स्त्री पुरुष सम्मान्नता जैसी समाजिक बुराइयों को बहूत बडावा दिया जाता था|
दहेज़ प्रथा |
प्रेमचंद जी ने अपनी कलम के सहारे इन सामाजिकी समस्याओं जैसे दहेज प्रथा, अनमेल विवाह, लगान, छूआछूत, जाति भेद भाव, विधवा विवाह, स्त्री पुरुष समानता को खत्म करने का बहूत प्रयास किया|
प्रेमचंद जी ने 300 से अधिक छोटी कहानियां और 14 उपन्यास (Novals) लिखे थे जो की अपने आप में बहूत बड़ी बात है| इनके कुछ सबसे लोकप्रिय कामों के बारे में हम आगे बात करेंगे|
उनकी मृत्यु के बाद उनकी कई रचनाओं का अनुवाद (Translation) अंग्रेजी और रूसी (Russian) भाषा में किया गया|
बचपन|
प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई, 1880 मे लमही गाँव में हुआ था जो की वाराणसी से 9 किलोमीटर की दुरी पर है|
दोस्तों प्रेमचंद कायस्थ (Kayastha) परिवार से नाता रखते थे और इनका परिवार काफी समृद्ध (Rich) था क्योंकि वह 9 ज़मीनों के मालिक थे|
प्रेमचंद जी के दादा गुरु सहाई राए एक पटवारी थे और पिता अजैब लाल पोस्ट ओफिस में क्लर्क (Clerk) थे|
और इनकी माता का नाम आनंदी देवी था|
दोस्तों ज्यादातर सभी लेखक अपने आस पास के दृश्यों और किरदारों को अपने लेखन में दर्शाते है| जैसे हमने हैरी पॉटर की लेखिका जे.के. रोलिंग के आर्टिकल में पड़ा था|
उसी तरह प्रेमचंद ने भी अपनी कहानी ‘बड़े घर की लड़की’ में आनंदी का किरदार अपनी माँ आनंदी देवी को समर्पित किया था|
प्रेमचंद जी के माता-पिता के चार बच्चे हुए थे लेकिन पहली 2 लड़कियों की बचपन में ही मृत्यु हो गई थी|
प्रेमचंद की एक बड़ी बहन थी जिसका नाम सुग्गी था|
माँ की मृत्यु
दोस्तों इनकी माँ बहूत लम्बे समय से बीमार थी और जब प्रेमचंद 8 साल के थे तो उनकी माँ की मर्त्यु हो गई| जिसके बाद उनकी दादी ने उनका ख्याल रखा| लेकिन कुछ समय बाद वह भी चल बसी|
इसके बाद प्रेमचंद बहूत अकेले पड़ गए थे क्योंकि उनके पिता पूरी दिन नौकरी पर रहते थे और उनकी बहन की शादी हो चुकी थी|
और परेशानी तो तब हुई जब उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी क्योंकि प्रेमचंद की सोतेली माँ उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं करती थी और इनकी हमेशा लड़ाई होती रहती|
अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए प्रेमचंद ने किताबे और कहानियाँ पड़ना शुरू कर दिया| उन्हें किताबे पड़ना तो पसंद था लेकिन स्कूली पड़ाई में वह बहूत कमज़ोर थे|
कुछ समय बाद वह एक दूकान में किताबे बेचने का काम करने लगे| इससे उन्हें बहूत सी किताबो को पड़ने का मोका मिल जाता था|
दोस्तों जैसा मैंने पहले बताया की इनके पिता एक क्लर्क थे तो 1890 में उनकी बदली (Transfer) उत्तर प्रदेश के जमानिया शहर में हो गई|
दूसरी तरफ प्रेमचंद को कुईंस कॉलेज (Queens College) में एडमिशन मिल गई थी जो की बनारस में था|
उन्होंने गोरखपुर रहते हुए ही अपना पहला लिखाई का काम किया लेकिन उसे कभी छापा नहीं गया और अब वह गूम हो चूका है|
शादी
1895 में जब प्रेमचंद 9वी कक्षा में पड़ रहे तो उनके पिता ने उनकी शादी करवा दी| यह रिश्ता प्रेमचंद के नाना द्वारा लाया गया था| लडकी एक अमीर घराने से थी और प्रेमचंद से उम्र में भी ज्यादा थी|
दोस्तों प्रेमचंद अपनी पत्नी के बारे में कहते थे की वह बहूत झगडालू थी और दिखने में भी सुन्दर नहीं थी| उनका कहना था “यह लडकी उम्र में मुझसे बड़ी थी और जब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सुख गया”
उनकी शादी करवाने पर वह अपने पिता के बारे में लिखते थे “पिताजी ने जीवन के अंतिम सालो में एक ठोकर खाई सवयं तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डूबा गए| मेरी शादी बिना सोचें समझे कर डाली”|
दोस्तों एसा जरुर उन्होंने अपनी सोतेली माँ को देखकर और अपनी पत्नी को देखकर कहा होगा क्योंकि वह दोनों ही झगडालू और बुरे स्वभाव की थी| और उनके पिता जी को भी एसा महसूस होता था|
पिता की मृत्यु
दोस्तों प्रेमचंद जी ने अपनी 10वी कक्षा को पास तो कर लिया था लेकिन उनके अंक 60% से कम थे तो उन्हें स्कालरशिप (Scholarship) नहीं मिली|
शादी के लगभग एक साल बाद 1897 में उनके पिता की मृत्यु एक लम्बी बिमारी के कारण हो गई थी|
जिस कारण घर की सारी जिमेदारीयां प्रेमचंद जी पर आ गई थी|
अब न उन्हें स्कालरशिप मिली थी और न ही कोई कमाई का ज़रिया था जिस कारण उन्हें अपनी पड़ाई छोडनी पड़ी| लेकिन वह बनारस से वापस गाँव नहीं गए|
उन्होंने बनारस में एक वकील के बेटे को पड़ाना शुरू कर दिया जिसके लिए उन्हें महीने के 5 रुपए मिलते थे और वहीं वकील के घर एक गंदे तबेले में रहते थे|
इस कमाए पांच रुपए में से उन्हें 3 रुपए अपने घर भेजने पड़ते थे और 2 रुपए से खुदका गुज़ारा करते थे|
अध्यापक की नौकरी करना|
1899 में इस बुरे समय के दोरान प्रेमचंद ने बहूत सी किताबे पड़ी और वह बहूत कर्जा भी ले चुके थे जिसे चुकाने के लिए वह एक दूकान में अपनी किताबे बेचने गए|
उस दूकान में उन्हें एक स्कूल के हैडमास्टर (Headmaster) मिले जिन्होंने प्रेमचंद को एक स्कूल में अध्यापक की नौकरी करने का प्रस्ताव दिया|
और प्रेमचंद यह काम करने लगे| उन्हें महीने के 18 रुपए मिलते थे और इसके साथ ही वह घर में भी बच्चो को पड़ाने लगे थे जिसके लिए वह 5 रुपए महीना फीस लेते थे|
एक साल बाद ही 1900 में प्रेमचंद को सरकारी जिला विधालय, बहराइच (Government District School, Behraich) में 20 रुपए प्रति माह पगार में नौकरी मिली गई|
और इसके तीन महीने बाद ही उनकी बदली प्रतापगढ़ के स्कूल में हो गई थी| जहाँ उन्हें बहूत ऐशो आराम की ज़िन्दगी मिली|
पत्नी का छोड़ना|
दोस्तों गर्मी की छुटियों में प्रेमचंद अपने गाँव वापस गए लेकिन बहूत से कारणों की वजह से प्रेमचंद वहां ज्यादा दिन नहीं रुक पाए|
क्योंकि गाँव के माहोल में उनको कुछ भी लिखने का मन नहीं कर रहा था| दूसरी तरफ उनकी सोतेली माँ और उनकी पत्नी के बिच भी बहूत लड़ाई हुआ करती थी|
जब एक दिन उनका झगड़ा बहूत बड़ गया था तो प्रेमचंद की पत्नी ने फांसी लगाकर आताम्हतिया करने की कोशिश की जिसके बाद प्रेमचंद ने उन्हें इतना डान्ठा की वह माइके वापस चली गई|
और प्रेमचंद ने भी उन्हें कभी वापस लाने का प्रयास नहीं किया|
दूसरी शादी
प्रेमचंद और उनकी पत्नी |
1906 में प्रेमचंद ने शिवरानी देवी के साथ दूसरी शादी की जो की एक विधवा थी और उनका पहले से ही एक बच्चा था|
दोस्तों उस वक्त एसा करना बहूत बड़ी बात थी| प्रेमचंद को बहूत लोगो की नफरत का सामना करना पड़ा|
और शिवरानी जी भी उनसे बहूत प्रेम करती थी| प्रेमचंद जी की मृत्यु के बाद शिवरानी ने उनके लिए एक किताब लिखी थी जिसका नाम था‘प्रेमचंद घर में’|
लिखने का सफ़र
शुरूआती काम|
स्कूल में पड़ाने के साथ साथ प्रेमचंद ने लिखना भी शुरू कर दिया था| उनके शुरुआत के कुछ कामो को इतना बडावा नहीं दिया गया|
दोस्तों अभी तक मुंशी प्रेमचंद अपना पुराना नाम धनपत राय ही इस्तमाल करते थे| उन्होंने अपनी पहले किताब को लिखते वक्त नवाब राय (Nawaab Rai) नाम का इस्तमाल किया|
उनकी पहली किताब का नाम असरार-ए-माबिद था जिसमे उन्होंने मंदिर के पुजारियों के बीच भ्रष्टाचार और उनके द्वारा किए जाने वाले गरीब महिलाओं के यौन शोषण के बारे में लिखा|
दोस्तों उनकी पहली किताब से यह साफ देखने को मिलता की उन्हें अनुभव की कमी है जो की सबको होती है|
गोपाल कृष्णा गोखले और बाल गंगाधर तिलक |
1905 में आज़ादी की लड़ाई के दोरान प्रेमचंद ने ज़माना पत्रिका में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) के नेता गोपाल कृष्णा गोखले (Gopal Krishna Gokhale) के बारे में लिखा था|
प्रेमचंद मानते थे की भारतियों को आजादी हासिल करने के लिए गोखले जी के तरीके नहीं अपनाने चाहिए इसके बदले हमें बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) जी का साथ देना चाहिए|
दोस्तों गोखले एक नरम नेता थे उनका मानना था की अगर हम अंग्रेज़ो के खिलाफ कुछ करेंगे तो देश को भारी नुक्सान हो सकता है इसीलिए वह सबको धीरे-धीरे आगे बड़ने के लिए कहते थे|
और तिलक जी जिनका प्रेमचंद पूरा सहयोग करते थे उनका कहना था की अगर हमें जल्दी से जल्दी आज़ादी मिल सकती है तो वह केवल लड़कर और बलिदान देकर संभव होगा अंग्रेज़ो के सामने झुककर नहीं|
दूसरी किताब (विधवा औरतो का पुनर्विवाह)
1907 में प्रेमचंद का दूसरा नोवल हुम्खुरना-ओ-हमसवाब (Hamkhurna-o-Hamsavab) जिसका (हिंदी में मतलब प्रेमा) छापा गया|
इस किताब को उन्होंने ‘बाबू नवाब राए बनारसी’ के नाम से लिखा|
उन्होंने इस किताब में विधवा औरतो के पुनर्विवाह (Remarriage) के बारे में बात की थी क्योंकि उस वक्त अमृत राय नाम के शक्ष ने अपनी एक सुन्दर और बड़े घर की मंगेतर के साथ शादी तोड़कर पूरना नाम की एक विधवा औरत से शादी की थी|
सोज़-ए-वतन|
1907 में प्रेमचंद ने ‘रूठी रानी’ कहानी को ज़माना पत्रिका में छापा और उसी साल उन्होंने सोज़-ए-वतन को भी निकाला जिसका हिंदी मतलब देश का मातम था|
इस किताब में प्रेमचंद ने पांच कहानियाँ पेश की थी और पांचो ही कहानियां को उर्दू में लिखा गया था| वह पांच कहानियां थी:
1. दुनियां का सबसे अनमोल रतन|
2. शेख मखमूर|
3. यहीं मेरा वतन है|
4. शोक का पुरूस्कार|
5. संस्कारिक प्रेम|
प्रेमचंद नाम को अपनाना|
1909 में प्रेमचंद स्कूल के सब-डिप्टी इंस्पेक्टर (Sub-Deputy Director) बन गए थे और उसी दोरान ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रेमचंद की किताब सोज़-ए-वतन को देशद्रोह का करार दे दिया गया|
उस समय प्रेमचंद हमीरपुर राज्य में थे और वहां के कलेक्टर जेम्स शमूएल स्टीवेंसन (James Samuel Stevenson) ने उनके घर में छापा मारा और सोज़-ए-वतन की बरामद हुई 500 कापियों को उसने जला दिया|
दोस्तों अभी तक प्रेमचंद किताबे लिखने के लिए ‘नवाब राय’ नाम का इस्तमाल कर रहे थे और अब उनके कामो पर नज़र रखी जाने लगी थी|
तो ज़माना पत्रिका के संपादक (Editor) मुंशी दया नारायण ने प्रेमचंद जी से कहा की उन्हें अब अपना नाम बदलकर किसी दुसरे नाम से लिखना शुरू करना चाहिए|
जिसके बाद उन्होंने नवाब राय नाम को छोड़कर मुंशी प्रेमचंद नाम को अपनाया|
1914 से प्रेमचंद ने हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में लिखना शुरू कर दिया था|
गोरखपुर में ट्रान्सफर|
1916 में प्रेमचंद को गोरखपुर में असिस्टेंट मास्टर बना दिया गया और यहाँ आने के बाद प्रेमचंद ने अपना लिखने का काम काफी बड़ा दिया था|
1919 में प्रेमचंद ने 4 नोवल लिखे जो की सौ-सौ पन्नो के थे जिनमे से ‘सेवा सदन’ नोवल सबसे ज्यादा पसंद किया गया|
यह नोवल एक दुखीपत्नी के बारे में लिखा गया था जो पहले एक वेश्या थी और बाद में वेश्याओं की जवान बेटियों के लिए आनाथालय सम्भालने लगी|
इस नोवल को बहूत पसंद किया गया और प्रेमचंद का इस नोवल के ज़रिये बहूत नाम हुआ|
महात्मा गांधी के कहने पर नौकरी छोड़ना|
1919 में प्रेमचंद ने अपनी छोड़ी पढाई को पूरा किया| उन्होंने अलाहाबाद से अपनी बी.ए. (BA) की डिग्री ली और उन्हें स्कूल का डिप्टी इंस्पेक्टर बना दिया गया|
असहयोग आन्दोलन (Non-Cooperation Movement) |
8 फरवरी, 1921 में प्रेमचंद गांधी जी के असहयोग आन्दोलन (Non-Cooperation Movement) की एक मीटिंग का हिस्सा बने|
वहां गाँधी जी ने सबको सरकारी नौकरियां छोड़ने के लिए कहा और अंग्रेजो द्वारा बनाई गई सारी वस्तुओ को भी त्यागने की बात की|
प्रेमचंद अपनी नौकरी छोड़ने के बारे में 5 दिन तक सोचते रहे क्योंकि वह शारीरिक रूप से अस्वस्थ थे और उन्हें 2 बच्चो और एक पत्नी का भी ध्यान था|
अपनी पत्नी से सहमति लेकर प्रेमचंद ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया|
लेकिन दोस्तों इस आन्दोलन के 2 साल बाद ही चौरी चोरा घटना (Chauri Chora Incident) हुई जिस कारण गाँधी जी को असहयोग आन्दोलन वापस लेना पड़ा|
अगर आप चौरी-चोरा घटना (Chauri Chora Incident) के बारे में नहीं जानते तो आप निचे दी गई विडियो को देख सकते है केवल 4 मिनट की है|
https://youtu.be/OMfO0oKRfxk
अब दोस्तों प्रेमचंद जी का नौकरी छोड़ना किसी भी काम नहीं आया क्योंकि आन्दोलन ही वापस ले लिया गया था|
गाँव वापस आना|
अपनी नौकरी छोड़ने के बाद 18 मार्च 1921 प्रेमचंद अपने गाँव वापस आ गए थे और अब वह लेखन में अपना पूरा समय देने लगे|
नौकरी छोड़ने के बाद प्रेमचंद को पैसे की बहूत दिक्कत रही और उनकी मृत्यु तक उनकी सेहत भी खराब ही रही|
अब 1923 में प्रेमचंद ने अपनी खुदकी प्रिंटिंग प्रेस शुरू की जिसके लिए उन्हें कर्जा लेना पड़ा लेकिन उन्हें इसमें भी नुक्सान ही हुआ|
बोलीवूद (Bollywood) जाना|
दोस्त अब सारा कर्जा उतारने के लिए प्रेमचंद ने सोचा की उन्हें अब बम्बई जाना चाहिए ताकि वह फिल्मो की कहानियां लिख सके|
1934 में प्रेमचंद बम्बई आए और उन्हें स्क्रिप्ट लिखने का काम मिला जिसके लिए उन्हें सालाना (Yearly) 8000 रुपए देने का तय हुआ|
मजदूर
मजदूर फिल्म का पोस्टर |
दोस्तों प्रेमचंद की पहली मूवी मजदूर थी जिसके कारण बहूत दिक्कत हो गई थी|
असल में इस फिल्म के ज़रिये प्रेमचंद ने दिखाया की कैसे फैक्टरियों के मालिक मजदूरों का फायदा उठाते है कैसे मजदूरों को बहूत कम तनख्वा में नौकरी पर रखा जाता है और उनसे पागलो की तरह काम करवाया जाता है|
इस फिल्म के ज़रिए प्रेमचंद ने मजदूर को अपने हक के लिए लड़ने को कहा और इन्हीं कारणों की वजह से बड़े बिज़नसमेन आग बबूला हो गए थे|
और प्रेमचंद की इस फिल्म पर प्रतिबंद लगा दिया गया| तो बम्बई में भी कुछ ख़ास काम नहीं बना और यह वापस आ गए|
मृत्यु
बम्बई से वापस आने के बाद प्रेमचंद अलाहाबाद में रहना चाहते थे जहाँ पर उनके बच्चे श्रीपत राय और अमृत कुमार राय पड़ रहे थे|
1936 में प्रेमचंद को प्रगतिशील लेखन संघ (Progressive Writer’s Association) का अध्यक्ष बना दिया गया| यहाँ काम करते समय उनकी सेहत खराब ही रही|
8 अक्टूबर 1936 में कई दिनों की बिमारी के बाद प्रेमचंद की मृत्यु हो गई| उनकी उम्र केवल 56 साल थी|
उपन्यास (Novels)
प्रेमचंद ने कुल 14 उपन्यास (Novals) लिखे थे जो आप निचे पड़ सकते है:
- प्रेमा (1907)
- कृष्णा (1907)
- रूठी रानी (1907)
- सोज़-ए-वतन (1908)
- वरदान (1912)
- सेवा सदन (1919)
- प्रेमाश्रम (1922)
- रंगभूमि (1924)
- निर्मला (1925)
- कायाकल्प (1926)
- प्रतिज्ञा (1927)
- गबन (1931)
- कर्मभूमि (1932)
- गोदान (1936)
- मंगलसूत्र (1936)
दोस्तों मंगलसूत्र प्रेमचंद जी का आखरी नोवल था यह नोवल पुरा होने से पहले ही प्रेमचंद की मृत्यु हो गई थी|
कुछ बेहतरीन नोवल विस्तार में|
गबन (1928)
दोस्तों गबन प्रेमचंद का दूसरा सबसे बेहतरीन नोवल माना जाता है|
इस नोवल में प्रेमचंद ने मध्यम वर्ग के परिवारों के लालच के बारे में और सवतंत्रता से पहले भारत की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बारे में बात की|
एक पति जो की आर्थिक रूप से (Financially) कमज़ोर है लेकिन कैसे अपनी पत्नी को खुश करने के लिए उसे गहने तोफे में देता है| लेकिन दुसरो से कर्जा मांग कर|
और देखते ही देखते दूसरा के क़र्ज़ तले दबने लगता है|
गोदान (1936)
1936 में लिखा गया गोदान उपन्यास हिंदी साहित्य का एक बहूत ही महान उपन्यास माना जाता है|
इस नोवल में प्रेमचंद ने गाँव के गरीब लोगो के सामाजिक और आर्थिक नुक्सान के बारे बताया| इसी के साथ उन्होंने गरीबो के साथ हो रहे शोषण के बारे में भी बहूत खूब लिखा|
यह प्रेमचंद द्वारा लिखा गया आखरी नोवल था|
गोदान फिल्म का ओस्टर |
गोदान नाम से ही 1963 में इस किताब पर एक हिंदी मूवी बनी जिसमे राज कुमार, कामिनी कौशल, महमूद और शशिकला ने किरदार निभाया|
और 2004 में गोदान को नाटक के रूप में दूरदर्शन चैनल में दिखाया गया|
प्रतिज्ञा (1927)
दोस्तों यह नोवल विधवा औरतो के दूसरी शादी करने के ऊपर लिखी गई है और कही न कही प्रेमचंद से बहूत तालुक रखती है क्योंकि उन्होंने भी अपनी दूसरी शादी एक विधवा से की थी|
छोटी कहानियां (Short Stories)
दोस्तों प्रेमचंद ने लगभग 300 से ज्यादा छोटी कहानियां लिखी थी सभी के बारे में यहाँ लिखना तो मुमकिन नहीं लेकिन हमने उनकी 18 सबसे बेहतरीन कहानियों के नाम निचे लिखे है:
- कफ़न (1936)
- ईदगाह (1933)
- पूस की रात (1930)
- दो बैलो की कथा (1931)
- नमक का दरोगा (1925)
- बड़े घर की बेटी (1926)
- बूढी काकी (1921)
- नशा (1934)
- बड़े भाई साहब (1910)
- ठाकुर का कुआं (1924)
- शतरंज के खिलाड़ी (1924)
- दुनियां का सबसे अनमोल रत्न (1907)
- बेटी का धन (1915)
- गुप्त धन
- मंत्र
- लाटरी
- बलिदान (1918)
- लेखक
- परीक्षा (1923)
महान विचार/Premchand Quotes in Hindi
“मैं एक मजदूर हूँ| जिस दिन कुछ न लिखू , उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक़ नहीं|”
“जिस बंदे को पेट भर रोटी नहीं मिलती उसके लिए मर्यादा और इज्ज़त ढोंग है”
“बूढ़ों के लिए अतीत के सुखों और वर्तमान के दुःखों और भविष्य के सर्वनाश से ज्यादा मनोरंजक और कोई प्रसंग नहीं होता।”
“वह प्रेम जिसका लक्ष्य मिलन है प्रेम नहीं वासना है।”
“जब किसान के बेटे को गोबर में से बदबू आने लगे तो समझ लो की देश में अकाल पड़ने वाला है|”
“अन्याय में सहयोग देना अन्याय करने के सम्मान है”
“मेरी राय है, जनता स्वयं अपना भला बुरा सोचे| यहाँ तो लोगो को लीडरी की पड़ी रहती है, तब भला वह कैसे जनता के हित की बात सोचेंगे| हिन्दू-मुसलमान की लड़ाइयों में तो यह अपनी लीडरी चमकाते है”
लगातार पूछे जाने वाले प्रश्न
- मुंशी प्रेमचंद का असली नाम क्या है?धनपत राय
- मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु कैसे हुई?
1936 में प्रेमचंद को प्रगतिशील लेखन संघ (Progressive Writer’s Association) का अध्यक्ष बना दिया गया| यहाँ काम करते समय उनकी सेहत खराब ही रही|
और 8 अक्टूबर 1936 में कई दिनों की बिमारी के बाद प्रेमचंद की मृत्यु हो गई| उनकी उम्र केवल 56 साल थी|
- प्रेमचंद की सबसे मशहूर 5 किताबे?सोज़-ए-वतन (1908)शतरंज के खिलाड़ी (1924)गबन (1931)ईदगाह (1933)गोदान (1936)
धन्यावाद
तो दोस्तों इस आर्टिकल के ज़रिये आपको Premchand Biography in hindi में पड़ने को मिली|
और हम आशा करते है आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा| अगर आपको कुछ भी जानकारी एसी दिखती है जो सही ना हो तो आप कमेंट्स मे हमें बता सकते है| (हमसे संपर्क करे)
हम इस आर्टिकल मे और क्या लिख सकते है आप वह भी बता सकते है जिससे हम आपकी और मदद कर सके|
तो धन्यवाद दोस्तों कॉमेंट्स मे जरुर बताइएगा आप अगला आर्टिकल कीनेके बारे मे पड़ना पसंद करेंगे|
Premchand Biography in Hindi
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