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चाणक्य की जीवनी: Chanakya ki Jivani

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चाणक्य की जीवनी: Chanakya ki Jivani

चाणक्य की जीवनी: Chanakya ki Jivani

जल्द जानकारी

नाम: कौटिल्य, चाणक्य और विष्णुगुप्त

जन्म: 350 BCE (ईशापूर्व)

मृत्यु: 283 BCE

जन्म स्थान: तक्षशिला (अब पाकिस्तान में)

मृत्यु स्थान: पाटलिपुत्र (अब पटना, भारत)

प्रसिधी का कारण: अर्थशास्त्र के लेखक और चन्द्रगुप्त मौर्या के गुरु

नमस्ते दोस्तों

दोस्तों जब मैं चाणक्य के बारे में पड़ रहा था तो मैं बिलकुल हैरान रह गया| एक ऐसे व्यक्ति जो अकेले ही पूरा देश चलना का ज्ञान रखते थे|

आज देश को चलना के लिए बहूत से मंत्री होते है जैसे शिक्षा मंत्री, रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और सबसे ऊपर प्रधानमंत्री| इन सभी का काम अकेले सम्भालने की बुद्धि थी चाणक्य जी की|

चाणक्य किसी इंसान से बात करते हुए यह बता देते थे की वह आदमी अगली बात क्या कहेगा| उसकी शक्ल देखकर समझ जाते थे की उसके मन में क्या चल रहा है| इस कला को समुन्द्र शाश्त्र कहते है|  

कौन थे चाणक्य?

चाणक्य को तीन नामो से जाना जाता है: चाणक्य, कौटल्य और विष्णुगुप्त|

दोस्तों चाणक्य एक लेखर, अध्यापक,  नाज्नेता और मौर्या साम्राज्य के महामंत्री थे| दोस्तों चाणक्य ने अपनी बुद्धि से उस समय के पुरे हिंदुस्तान को जीत लिया था|

केवल मुट्ठी भर सेना के साथ मिलकर उन्होंने ऐसी योजनाए बनाई और सिकंदर की लाखों की फ़ौज को हरा दिया|

पूरा हिन्दुस्तान जितने के बाद चाणक्य ने देश चलाने के बहूत ज़बरदस्त नियम बनाए और उन सभी को उन्होंने अपनी किताब अर्थशास्त्र में लिखा जिनके बारे में हम आगे बात करेंगें|

बचपन

दोस्तों कबीर दास जी की तरह ही चाणक्य जी के जन्म के बारे में भी कुछ पक्के तौर पर नहीं कहा जाता| लोगो का कहना है की उनका जन्म 350 ईशापूर्व (BCE) में हुआ था और उनका जन्मस्थान तक्षशिला था जो की आज पाकिस्तान में है|

कुछ लोगो का कहना है चाणक्य कुटिल वंश से थे जिस कारण उनका नाम कौटल्य पड़ा|

और कुछ कहते है उनके पिता का नाम चनक था जिस कारण उन्हें चाणक्य भी बुलाया गया और उनकी माँ का नाम च्नेश्वरी (Chaneshwari) था| इनका परिवार एक गरीब ब्राह्मण परिवार था|

एक कहानी

दोस्तों जब चाणक्य पैदा हुए थे तो उनके मुह में पहले से ही एक दांत था जो की माना जाता था की राजा बनने की निशानी होती थी|

यह बात सुनने के बाद चाणक्य की माँ बहूत परेशान रहने लगी| उन्हें इस बात का डर लगा रहता  था की चाणक्य राजा बनानें के बाद उन्हें भूल जाएगे|

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चाणक्य अपना दांत तोड़ते हुए

जब चाणक्य केवल 5 साल के थे तब उन्हें यह बात पता चली और उसी वक्त उन्होंने एक पत्थर उठाया और अपना वह दांत तोड़ दिया और अपनी माँ से कहा की ‘माँ ऐसे राज्य की कोई ज़रूरत जो तेरी आखो में आसू लाए’|

इससे पता चलता था की चाणक्य को कभी भी राजा बनने का लालच नहीं था वह हमेशा से एक एसा राज्य चाहते थे जिसमे रहने वाला हर नागरिक खुश हो|

शिक्षा

दोस्तों लोगो का कहना है की चाणक्य ने तक्षशिला विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी जो की आज पाकिस्तान में है|

दोस्तों उस समय के शीशा केंद्र आम नहीं होते थे| उनमे पड़ने वाले हर छात्र को अर्थशास्त्र, युद्ध रणनीतियां, दवा का इस्तमाल और हर प्रकार का ज्ञान था|

और उनमे सबसे ऊपर थे चाणक्य हर विषय में उत्तम|

दोस्तों आगे चलकर चाणक्य ने बहूत से शाश्त्र पड़े और इसी विश्वविद्यालय में आचार्य बने| वह वहां के सबसे बेहेतरीन गुरुओ में से एक थे|

सिकंदर का भारत में हमला|

दोस्तों जिस समय चाणक्य तक्षशिला में आचार्य थे उस वक्त सिकंदर आधी दुनिया को जितने के बाद सिकंदर भारत की ओर बड रहा था|

और यहाँ उसने सबसे पहले गांधार को जितने का सोचा जिसके राजा आम्भी थे| उन्होंने सिकंदर के सामने बिना लडे ही घुटने टेक दिए|

गांधार में आज के अफगानिस्तान और पाकिस्तान के कुछ इलाके शामिल थे जो की अब सिकंदर के कब्ज़े में थे|

सिकंदर को हराने की निति |

दोस्तों उस वक्त भारत छोटे-छोटे राज्यों में बटा हुआ था|

चाणक्य इस वक्त यह सोचा रहे थे की भारत अगर ऐसे ही बटा रहा तो हम कभी भी विदेशी ताकतों को हर नहीं पाएंगे| जैसे सिकंदर के साथ हो ही रहा था|

तो उन्होंने पुरे भारत को एक करने का और एक शक्तिशाली राजा को खड़ा करने का सोचा जिसके लिए उन्होंने अलग-अलग राजाओ से मिलने का फेसला किया और शरुआत मगध से की|

दोस्तों मगध उस समय नंद वंश (Nanda Dynasty) का सबसे बड़ा राज्य था जिसमे आज के उत्तरप्रदेश, बिहार, निचे  छत्तीसगढ़, ओड़िसा, झारखण्ड शामिल थे|

जब चाणक्य मगध में पहुंचे तो उन्होंने देखा की वहां की हालत बहूत खराब थी क्योंकि वहां की प्रजा को पीट पीटकर कर (Tax) वसूल किया जाता था|

और उसी कर के पैसो को वहां का राजा धनानंद अपनी शराब और एशो आराम के लिए इस्तमाल करता था|

धनानंद के पास जाने के बाद उन्होंने उसे समझाया की आप अपनी राजगद्दी का गलत फायदा उठा रहे है| लोगो से कर वसूलने के बाद उसे राज्य और उसके लोगो की भलाई में लगाना ही एक राजा का धर्म है|

यह सुनकर धनानंद ने चाणक्य को लात मारकर निचे गिरा दिया और कहा पंडित है तो अपनी चोटी का ही ध्यान रख; युद्ध करना राजा का काम है तू अपनी पंडिताई कर|

उस वक्त चाणक्य बहूत क्रोधित हो गए और धनानंद के सामने कसम खाई की वह अपनी शिखा (चोंटी) तब तक नहीं बांधेंगे जब तक वह उसके पुरे राज्य को खत्म नहीं कर देते|

चंदार्गुप्त मौर्या से मिलना|

दोस्तों मगध में हुई घटना के बाद चाणक्य ने एक योजना बनानी शुरू की देश की एसी योजना जिसमे धनानंद जैसे राजा न हो और पुरे भारत का एक ही शाशक हो| बिलकुल वैसे ही जैसा आज राष्ट्रपति होते है|

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और इसी समय के दोरान चाणक्य ने अर्थशास्त्र लिखनी शुरू की| एक एसी किताब जिसमे देश को कैसे चलाना चाहिए इसी बारे में हर बात मौजूद है|

इस दोरान चाणक्य की मुलाक़ात चंदू नाम के एक लडके से हुई जिसे आगे चलकर चंदार्गुप्त के नाम से जाना गया|

दोस्तों कुछ लोग कहते है जब वह चंदार्गुप्त से मिले थे तब वह केवल 9-10 साल के थे कुछ लोग चंदार्गुप्त की उम्र 17-18 साल की बताते है और कुछ उससे भी ज्यादा|

तो जब चाणक्य चंदार्गुप्त से मिले तो उन्हें चन्द्रगुप्त में वह सारी खूबियां दिखी जो एक सफल राजा में होनी चाहिए और उसे अपना शिष्य बना लिया|

उन्होंने चंदार्गुप्त को बहूत से शाश्त्र सिखाए और एक योधा बनाया|

इस दोरान सिकंदर गांधार जितने के बाद निचे पंजाब की तरफ आया और वहां पोरस के साथ उसका युद्ध हुआ|

अब दोस्तों कुछ किताबो में एसा कहा गया है की पोरस ने सिकंदर को हरा दिया था लेकिन ज्यादातर दस्तावेजों से यही कहा जा सकता है की जीत सिकंदर की ही हुई थी|

सिकंदर को हराना|

दोस्तों सिकंदर बहूत दूर से लड़का हुआ भारत तक पहुंचा था और चाणक्य यह जानते थे की उसकी सेना अब थक चुकी है|

चाणक्य ने सोचा की अगर उन्हें सिकंदर को हराना है तो सिकंदर की कमजोरी का पता लगाना होगा| उन्होंने चन्द्रगुप्त को किसी तरह से सिकंदर की सेना में शामिल करवा लिया|

वहां चंदार्गुप्त ने सिकंदर की सेना के बिच रहते हुए अफवाह फेलानी शुरू कर दी की भारत के भगवान और देवी देवता सिकंदर और उसकी सेना से नाराज़ हो चुके है|

कभी-कभी चंदार्गुप्त सेना के खाने में ज़हर मिला देते थे और ऐसे करते करते उन्होंने सिकंदर की सेना को मानसिक रूप से भी पूरी तरह से थका दिया था| जिसके बाद सिकंदर ने वापस जाने का फेसला किया|

मगध को जितना

सिकंदर के वापस जाने के बाद अब चाणक्य ने सोचा की वह मगध को भी आसानी से हरा देंगे और अपनी छोटी सी सेना लेकर उन्होंने मगध पर आक्रमण कर दिया|

लेकिन दोस्तों इसी अतिआत्मविश्वास (Overconfident) के चलते वह धनानंद से हार गए और चाणक्य को अपनी इस हार से समझ आया की उन्हें सीधा मगध की राजधानी पर हमाला नहीं करना चाहिए था|

इसके बाद चाणक्य ने धनानंद को हराने के लिए रणनीतियाँ बनाई:

  1. सबसे पहले उन्होंने उन राज्यों को अपने साथ जोड़ना शुरू किया जो सिकंदर के खिलाफ थे या उससे हार चुके थे और उन राज्यों को भी जो मगध के दुश्मन थे|
  2. दूसरा इस बार चाणक्य ने मगध की राजधानी पर हमला नहीं किया जैसे पिछली बार किया था| इस बार उन्होंने मगध के बाहरी राज्यों को जीतना शुरू किया|
  3. तीसरा उन्होंने सेना को ओर बड़ा करने के लिए एक ऋषि का रूप धारण किया और गाँव गाँव जाकर लोगो को प्रवचन सुनाते और जब लोग उनके साथ जुड़ने लगे तो उन्होंने लोगो को चंदार्गुप्त की सेना में शामिल होने को कहा|
  4. चौथी योजना में उन्होंने विदेशी देशो को भी अपने साथ शामिल किया| पंजाब के पोरस, कश्मीर के राजा पर्वर्तक और समुंदरी लुटेरो को सबको साथ लाकर एक बहूत बड़ी सेना त्यार कर ली|

और इतनी चतुराई के साथ अब जब उन्होंने नंद वंश पर हमला किया तो धनानंद का पूरा राज्य तबाह कर दिया और आखिकार चाणक्य ने अपनी शिखा (चोंटी) फिरसे बाँधी|

राज्य चलाने के नियम|

दोस्तों चाणक्य ने राज्य को चालने के लिए साथ नियमो के बारे में लिखा था जिसे उन्होंने सप्तांग का नाम दिया| वह सात अंग निचे लिखे है:

  1. राजा: जिस प्रकार आज हर देश में राष्ट्र-पति और प्रधानमंत्री होते है उसी प्रकार चाणक्य ने राजा को राज्य का सबसे प्रथम नागरिक बताया है|
  2. अमात्य: दोस्तों अमात्य जैसे आज हर विभाग को सम्भालने के लिए मंत्री है उसी प्रकार चाणक्य ने अमात्य को राज्य की आँख कहा है जिसका इमानदार होना बहूत जरूरी है|
  3. जनपद: जनपद यानी राज्य की प्रजा जिस प्रकार आज देश के नागरिक है इनके बिना देश और राज्य की कल्पना नामुमकिन है|
  4. कोष: यानीराज्य कीअर्थव्यवस्था, उसके पास पड़ी पूंजी जिसके बिना दुसरे राज्य से मुकाबला करना उनसे युद्ध करना असंभव था|
  5. दंड: मतलबसेना जैसे आज पुलिस और फौजी है| यह राज्य में शान्ति बनाए रखने के लिए जरूरी है|
  6. मित्र: जैसे आज हर देशदुसरे देशो के साथ मित्रता बनाने की कोशिश करते है उसी प्रकार चाणक्य का मानना था की यह मित्रता जरूरी है ताकि युद्ध के समय उनकी शहयता ली जा सके|
  7. दुर्ग: दुर्ग यानी किला जिसमे राजा और मंत्रियो सुरक्षित रह सके वेसी ही जैसे आज हर मंत्री को बॉडीगार्ड दिए जाते है|

दोस्तों चाणक्य ने इन सभी को राज्य का एक एहेम हिस्सा बताया है और जैसे आज संविधान पर पूरा देश चलता है उसी प्रकार चाणक्य का अर्थशास्त्र भी पूरी दुनिया में बना सबसे पहला सम्विधान माना जाता है|

सिकंदर के साथ दुबारा युद्ध|

दोस्तों सिकंदर की मृत्यु के बाद उसके जनरल सेलुक्स ने उसकी गद्दी छीन ली थी और अब उसने भारत पर दुबारा हमला करने की सोची| यह बात चन्द्रगुप्त के राजा बनने के 20 बाद की थी|

सेलुक्स को लगा की भारत पहले जैसे ही टुकडो में बटा होगा लेकिन चन्द्रगुप्त ने चाणक्य की मदद से भारत को बहूत शक्तिशाली बना दिया था|

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जब सेलुक्स ने भारत पर आक्रमण किया तो चन्द्रगुप्त ने एसा जवाबी हमला किया की सेलुक्स को घुटने टेकने पड़े| उसने चंद्रगुप्त और चाणक्य के सामने हतियार दाल दिए|

और दोस्तों चाणक्य इतने चतुर थे उन्होंने सेलुक्स के सामने 2 शर्ते रखी:

  1. पहली शर्त यह थी की सेलुक्स गांधार के राज्य (आज का अफगानिस्तान, पाकिस्तान और काबुल के इलाके) जो की सेलुक्स के कब्ज़े में थे वह चन्द्रगुप्त को वापस देगा|
  2. दूसरा चाणक्य ने कहा की सेलुक्स को अपनी बेटी हैलन का विवाह चन्द्रगुप्त से करवाना होगा और उससे हुई संतान चन्द्रगुप्त के बाद राजा नहीं बनेगी|

जब चन्द्रगुप्त चाणक्य से विवाह का कारण पूछा तो चाणक्य ने कहा की एसा करने से फिर कभी भी सेलुक्स भारत पर हमला नहीं करेगा क्योंकि यहाँ अब उसकी बेटी होगी|

सेलुक्स को अपनी जान बचाने के लिए यह सभी बाते माननी ही पड़ी और फिर कभी भी भारत पर हमला नहीं किया|

महान विचार/Chanakya quotes in hindi image

अपने राज़ किसी को भी मत बताइए। एसा करने से आप अपने आपको खत्म कर देंगे यही मेरा सबसे बड़ा गुरु मंत्र है|

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पुस्तकें एक मुर्ख आदमी के लिए वैसे ही हैं, जैसे एक अंधे के लिए आइना।

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भाग्य भी उन्हीं का साथ देता है जो कठिन से कठिन स्थितियों में भी अपने लक्ष्य के पर अड़े रहते हैं।”

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जैसे एक बछड़ा हज़ारो गायों के झुंड मे अपनी माँ के पीछे चलता है। उसी प्रकार आदमी के अच्छे और बुरे कर्म उसके पीछे लगे रहते है।

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विद्या इंसान का एसा गहना है जिसको चोर भी नहीं चुरा सकते|

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गवान मूर्तियों में नहीं है। आपकी भावनाएँ ही आपके ईश्वर है| आत्मा आपका मंदिर है|

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धन्यावाद


तो दोस्तों इस आर्टिकल के ज़रिये आपने चाणक्य की जीवनी: Chanakya ki Jivani पड़ी|

और हम आशा करते है आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा| अगर आपको कुछ भी जानकारी एसी दिखती है जो सही ना हो तो आप संपर्क कर हमें बता सकते है| (हमसे संपर्क करे)

हम इस आर्टिकल मे और क्या लिख सकते है आप वह भी बता सकते है जिससे हम आपकी और मदद कर सके| 

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Kabir Das Biography in Hindi

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