Kabir Das Biography in Hindi |
कबीर दास की जीवनी: Kabir Das Biography in Hindi
जल्द जानकारी
जन्म: 1398 या 1440
मृत्यु: 1448 या 1518
जन्म स्थान: काशी (अब वाराणसी), उत्तरप्रदेश
मौत का स्थान: मगहर, उत्तरप्रदेश
गुरु: स्वामी रामानंद
बीवी: माता लोई
बच्चे: कमाल और कमाली
नमस्ते दोस्तों
दोस्तों कबीर दास एक ऐसे गुरु जिन्होंने 15वी शताब्दी में धर्मो को लेकर बहूत सवाल उठाए जो ब्राहमण पंडितो और मुसलमान फकीरों का ढोंग सामने लाए|
न केवल धर्म बल्कि उन्होंने दुकानदारों के घोटाले, ऊँची जाती वाला का छोटी जाती लोगो के लिए व्यवहार को लेकर भी किसी को नहीं छोड़ा|
दोस्तों आप अभी का समय ही ले लीजिए अगर आज कोई किसी धर्म को लेकर कुछ कहता है तो कितना बड़ा बवाल बन जाता है| फिर कबीर जी ने तो आज से करीब 600 साल पहले एसा किया था|
कबीर के पुरे जीवन में उनके इसी व्यवहार के कारण बहूत से हिन्दू और मुस्लिम लोगो ने कबीर को जान से मारने का प्रयास किया लेकिन नाकामयाब रहे|
और दोस्तों आप सुनकर दंग रह जाएंगें की कबीर की मृत्यु के बाद हिन्दू और मुसलमानॉ के बीच बहूत बड़ी बहस हुई थी|
हिन्दू चाहते थे की कबीर को हिन्दू रिवाजों के ज़रिए अंतिम विदाई जी जाए और मुस्लिम अपने रिवाजों के ज़रिए|
क्योंकि कबीर की मृत्यु तक बहूत से लोग कबीर को पूजने लगे थे| कुछ एसा ही प्रभाव था दोस्तों कबीर दास जी का|
बचपन|
दोस्तों कबीर के जीवन को लेकर बहूत सी अलग-अलग कहानियां बताई जाती है| इतिहासकारों और लोगो ने कबीर के कहे दोहों और रचनाओ का इस्तमाल कर उनके बारे में बताना का प्रयास किया|
उनके जन्म और मृत्यु का साल भी किसी को ठीक से नहीं पता| कुछ लोग कहते है की उनका जीवन काल 1398 से 1448 के बीच था और कुछ 1440 से 1518 के बीच बताते है|
कबीर जी के जन्म की तरह ही उनके पुरे जीवन काल के बारे में अलग अलग बाते कही जाती है| हम आपको हर कहानी के बारे में बताने की कोशिश करेंगे|
जन्म स्थान
काशी: ज्यादातर इतिहासकारों का यह कहना है की कबीर जी का जन्म स्थान काशी (वाराणसी) था और निचे दी गई पंक्ति को वह इस बात का सबूत बताते है:
काशी में परगट भये ,रामानंद चेताए
(अर्थात: मैं काशी में प्रकट हुआ और रामानंद ने मुझे अपना शिक्षक बनाया और ज्ञान दिया)
मगहर: कुछ लोग कबीर का जन्म स्थान मगहर बताते है| क्योंकि कबीर जी ने अपनी एक पंक्ति में वहां का उल्लेख भी किया था:
पहिले दरसन मगहर पायो पुनि काशी बसे आई
(अर्थात: काशी में रहने से पहले उन्होंन मगहर देखा)
बेलहरा, आजमगढ़: और बाकी बचे लोग उनका जन्मस्थान आजमगढ़ का बेलहरा गाँव बताते है|
जन्म की कहानी
पहली कहानी: दोस्तों लोग कहते है कबीर एक चमत्कार से पैदा हुए थे| उनकी माँ एक विधवा औरत थी जो की भक्ति में लीन रहती थी|
जब वह अपने पिता के साथ एक मशहूर तपस्वी की तीर्थ यात्रा पर गई थी तो उनकी भक्ति देख वह तपस्वी बहूत खुश हुआ और उन्हें आशीर्वाद दिया की वह बहूत जल्दी एक पुत्र को जन्म देगी|
बहूत से लोगो का मानना है की उस तपस्वी के आशीवाद से कबीर का जन्म उनकी माँ की हथेली में हुआ था|
कबीर दास जी और नीमा और नीरू |
और क्योंकि वह एक विधवा थी तो लोगो से शर्मिंदा होने से बचने के लिए उन्होंने लहरतारा तालाब में बहती एक टोकरी में कबीर को छोड़ दिया|
जिसके बाद उन्हें नीमा और नीरू नाम के मुसलमान जोड़े ने तालाब से उठाया और गोद लिया| वह जुलाहा जाती के थे|
दूसरी कहानी: कुछ लोगो का कहना है की कबीर तालाब में एक कमल के फूल के ऊपर प्रगट हुए थे जिसके बाद वहीं नीमा और नीरू ने उन्हें तालाब से उठाया|
दोस्तों लोगो का यह भी कहना है की जब बच्चे के बारे में लोग नीमा से सवाल करने लगे, तो कबीर (जो की कुछ ही दिनों के एक बच्चे थे) ने चमत्कारिक रूप से कहा की:
"मैं एक महिला से पैदा नहीं हुआ था, लेकिन एक लड़के के रूप में प्रकट हुआ था मेरे पास न तो हड्डियां हैं, न ही खून है और न ही त्वचा है|
कबीर नाम
दोस्तों कहाँ जाता है की कबीर जी का नाम एक क़ाज़ी द्वारा रखा गया था| जब उस क़ाज़ी ने नाम खोजने के लिए कुरान को खोला तो किताब के हर पन्ने में कबीर कबीर कबीर नाम लिखा हुआ था|
कबीर का मतलब है महान जो की उस समय नाम के तौर पर केवल भगवन ने के लिए इस्तमाल किया जाता था|
कबीरा तू ही कबीरू तू तोरे नाम कबीर
राम रतन तब पाए जद पहिले ताजी सारी
(अर्थात: तू महान है, तू वही है तेरा नाम कबीर है
देह का मोह त्यागने पर ही राम रत्न मिलता है।)
शिक्षा
दोस्तों कबीर जी ने कोई भी किताबी शिक्षा नहीं ली थी क्योंकि उनकी परिवार की स्तिथि कुछ ख़ास नहीं थी और ना ही उन्हें पड़ाई में दिलचस्पी थी|
उन्हें पुरे दिन खाने का इंतज़ाम करने के लिए मेहनत करनी पडती जिस कारण ना ही वह अपनी उम्र के दुसरे बच्चो की तरह खेल पाते थे|
कबीर का मानना था की किताबी शिक्षा से ज्ञान बड़ाकर कुछ फायदा नहीं अगर हम दुसरो का सम्मान नहीं कर सकते तो|
पढ़ी पढ़ी के पत्थर भया लिख लिख भया जू ईंट|
कहें कबीरा प्रेम की लगी न एको छींट|
(अर्थात: यदि अगर बहूत ज्ञान पाने के बाद इंसान पत्थर दिल बन जाए तो उस शिक्षा का कोई लाभ नहीं| ज्ञान से बड़ा प्रेम होता है|)
दोस्तों कबीर जी को लिखना और पड़ना नहीं आता था और आज जो हम कबीर जी के दोहे और चोपाइयाँ पड़ते है वह उनके शिष्य क्मात्या और लोई ने लिखे थे|
गुरु शिक्षा
कुछ लोगो का कहना है की कबीर जी का कोई गुरु नहीं था इसके संदर्भ में कबीर जी की एक पंक्ति बताई जाती है:
आपही गुरु आपही चेला
(अर्थात: गुरु से कबीर जी का एकात्म हो गया था, गुरु और उनमे अब कोई फर्क नहीं है)
और कुछ लोगो का कहना है की कबीर जी ने किताबी शिक्षा तो ग्रहण नहीं की थी लेकिन उन्होंने गुरु शिक्षा स्वामी रामानंद जी से ली थी| एसा कबीर जी की एक पंक्ति में देखने को मिलता है:
“काशी में परगट भये ,रामानंद चेताये”
(अर्थात: मैं काशी में प्रकट हुआ और रामानंद ने मुझे अपना शिक्षक बनाया और ज्ञान दिया)
दोस्तों रामानंद कबीर जी के गुरु कैसे बने इसकी भी बहूत सी अलग अलग कहानियां है|
कुछ लोग कहते है जब रामानंद जी की उम्र 105 साल की थी तब कबीर जी केवल 5 वर्ष के थे उस छोटी सी आयु में कबीर ने बहूत से तरीके आज़माए रामानंद जी को अपना गुरु बनाने के लिए|
कबीर जी जब पहली बार रामानंद जी के आश्रम गए तो रामानंद ने उन्हें उनकी छोटी जात के कारण आश्रम से बहार निकाल दिया था|
कबीर ने बहूत कोशिश की रामानंद जी से मिलने की पर रामानंद कबीर से दुरी बना रहे थे|
कबीर दास जी रामानंद जी के सामने लेटे हुए |
फिर एक दिन कबीर जी उस जगह सो गए जहाँ से रामानंद हर रोज़ स्नान करने जाते थे| जब अनजाने में कबीर जी के पैरो पर रामानंद जी का पैर लगा तो उनके मुख से राम राम राम शब्द निकले|
और इसी राम राम राम शब्द को कबीर ने अपना गुरुमंत्र मान लिया और रामानंद ने भी इस हादसे के बाद कबीर को आपना शिष्य बना लिया|
धर्म और जातिप्रथा
दोस्तों उस समय मे जाति और धर्म को लेकर बहूत ही ज्यादा बुरे हालात थे| एक इंसान ने किस जाती में जन्म लिया है तय करती थी की वह केसी ज़िन्दगी जिएगा और क्या काम करेगा|
कबीर इस धर्म और जाती से सख्त खिलाफ थे उन्हें इस बात से कुछ फरक नहीं पड़ता था की वह हिंदी है या मुसलमान या किसी और जाती के|
कबीर जब उंच नीच के भेदभाव को लेकर किसी पर अत्याचार होते देखते तो वह बिना कुछ सोचे समझे बिच में कूद पड़ते फिर चाहे उनके सामने कितने भी लोग क्यों न खड़े हो|
जैसे हमने उपर बात की थी की कबीर एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे लेकिन उन्हें एक मुसलमान जोड़े ने तालाब से उठाया जो की जुलाहा (नीची जाती) के थे|
दोस्तों एक बार कबीर एक नदी किनारे जा रहे थे तो उन्होंने कुछ ब्राह्मण पंडितो को नदी में स्नान करते हुए देखा तो पूछा की ‘पंडित जी ऐसे नाहन से क्या फायदा अगर मन का मैल ही न साफ़ हो पाए’|
‘ऐसे तो मछली पूरी ज़िन्दगी पानी में पड़ी रहती है लेकिन एसा करने से उसकी बदबू खत्म हो जाती है क्या?’|
फिर कबीर ने अपने लकड़ी के प्याले में गंगा का पानी भरा और उन पंडितो को पीने के लिए दिया|
एक नीची जाति के व्यक्ति द्वारा पानी परोसने पर वह लोग काफी नाराज हुए जिसपर कबीर ने कहा की ‘अगर गंगाजल मेरे बर्तन को शुद्ध नहीं कर सकता तो वह तुम्हारी शुद्धि कैसे करेगा?’|
इस बात पर कबीर ने अपना बहूत ही खुबसूरत दोहा कहा:
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय
(अर्थात: चाहे कितनी भी पोथी पत्रा पढ़ के तुम दिमाग में कचरा इकठ्ठा कर लो, तुम पंडित नहीं बन सकते जब तक कि प्रेम के ढाई अक्षर नहीं पढ़ लेते| जब तक तुम प्रेम की गहराई नहीं पहचानोगे, तुम परमात्मा को नहीं जान पाओगे और जो परमात्मा को नहीं जान पाया वो कैसा पंडित|)
और दोस्तों एसी बातें उस समय एक नीची जाती वाला व्यक्ति एक पंडित को कहे यह कोई छोटी बात नहीं थी| जिस कारण कबीर को बहूत बार पीटा भी जाता था|
कबीर जी समय समय पर इस तरह की बातें निडरता के साथ कहाँ करते थे और यही साहस रामानंद जी ने कबीर को सिखाया था|
कबीर का मानना था की इस संसार में जन्में हर इंसान को भगवान तक पहुचने का अधिकार है फिर यह मायने नहीं रखता की वह कोंसी जात का हो|
न ही हमे इसके लिए मंदिर और मूर्तियों को पूजने की हवन और पाठ रखवाने की जरूरत है|
पाथर पूजे हरि मिले , तो मैं पूजू पहाड़ .
घर की चाकी कोई ना पूजे, जाको पीस खाए संसार
(अर्थात: अगर पत्थर की मूर्ती को पूजने से भगवान् मिलते है तो मैं पहाड़ की पूजा कर लेता हूँ| लोग उस फर्श की पूजा क्यों नहीं करते जिस पर वह हर होज़ आटा गूंद कर अपना पेट भरते है|
दोस्तों कबीर ने धर्म और उसके आधार पर हो रहे भेद भाव को लेकर बहूत लोगो को जागरूक किया|
और जैसे जैसे लोगो यह समझ आने लगा की धार्मिक गुरु केवल उनकी जेबे लूट रहे है तो कबीर को मानाने वालो की संख्या भी बड़ने लगी|
जब पंडितो और मुसलमानों को अपनी दूकान बंद होने का डर होने लगा तो उन्होंने कबीर जी को जान से मारने के लिए भी बहूत बार प्रयास किए|
कबीर द्वारा किए गए कार्य
कबीर जी द्वारा लिखे कुछ महान लेखन है जैसे:
- बीजक
- कबीर ग्रंथावली
- अनुराग सागर
- सखी ग्रन्थ
कबीर की शिक्षाओं ने कई व्यक्तियों और समूहों को आध्यात्मिक रूप से प्रभावित किया|
जैसे सीखो के गुरु नानक देव जी, अहमदाबाद के दादू जिन्होंने दादू पंथ की स्थापना की, अवध के जीवन दास जिन्होंने सतनामी संप्रदाय की शुरुआत की, कुछ कबीर को अपना मार्गदर्शक मानते है|
कबीर को मानाने वाला एक बड़ा समूह कबीर पंथ के नाम से जाना जाता है और उन्हें कबीर पंथि कहते है| उनका मानना है की कबीर उन्हें मोक्ष की ओर लेजाने में मदद करते है|
कबीर पंथ लगभग पुरे उत्तर भारत में फैले हुआ है|
शादी और बच्चे|
पहली कहानी: कुछ लोग कहते थे की कबीर जी ने लोई नाम की महिला से विवाह किया था और कमाल और कमाली का जन्म हुआ|
दूसरी कहानी: इसके मुताबिक़ कबीर की कोई पत्नी नहीं थी लेकिन कमाल और कमाली का जन्म जरुरु हुआ था|
हुआ यूँ था दोस्तों जब मुसलमानों ने कबीर जी से परेशान होकर दिल्ली के बादशाह शिकंदर लोधी को उनकी शिकायत लगाई की कबीर लोगो को अलाह के खिलाफ भड़का रहा है|
तो सिकंदर ने कबीर जी की 52 तरीको से परीक्षा ली जिनमे से एक परीक्षा के दोरान कमाल और कमाली का भी जन्म हुआ| इस कहानी के मुताबिक़ वह शादीशुदा नहीं थे|
यात्रा
दोस्तों हम कबीर जी को यात्राओं के मामले में हमारे देश के दुसरे स्थान के व्यक्ति कह सकते है पहले स्थान के व्यक्ति के बारे में तो आप सब जानते ही है हमारे प्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी 😄|
तो दोस्तों कबीर जी की यात्राओं के बारे में बहूत चर्चा की जाती है कहते है की वह अपने पुरे जीवन का में देश भर में बहूत घूमे थे और उन्होंने एक लम्बा जीवन जिया था|
उनकी अंतिम यात्राओं के दोरान उनका शरीर इतना कमज़ोर हो गया था की वह अब भजन कीर्तन भी नहीं कर पाते थे|
मृत्यु
15वी शताब्दी में एसा माना जाता था की जिसकी भी मृत्यु काशी में हो उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी|
और जो भी अपना अंतिम वक्त मगहर में बिताएगा उसे नरक की प्राप्ति होगी और अगले जन्म में गधे का जीवन मिलेगा|
कबीर इस अफवा को खत्म करने के लिए अपने अंतिम समय में मगहर चले गए और वहीं उनकी मृत्यु हुई|
और दोस्तों जैसे हमने उपर बात की थी की उनके जन्म और मृत्यु की तारिक किसी को नहीं पता| तो हमें माफ़ कीजिएगा हम आपको वह नहीं बता सके|
दोस्तों कबीर के अंतिम समय तक बहूत से हिन्दू और मुस्लिम लोग कबीर को मानने लगे थे|
कबीर की मृत्यु के समय हिन्दुओं और मुस्लिमो के बीच बहूत लड़ाई हुई| हिन्दू कबीर जी का दाह संस्कार करना चाहते थे और मुसलमान कबीर के शव को दफना कर अंतिम विदाई देना चाहते थे|
लेकिन एसा कहते है की जब यह झगड़े हो रहे थे तो कबीर जी का शव गायब हो गया और उस जगह ढेर सारे फूल पड़े हुए थे|
मगहर में कबीर जी की समाधि और मज़हर |
आधे फूलो को लेकर हिन्दुओं ने वहीं समाधि बना ली और मुस्लमो ने अपने हिस्से के फूलो से मज़हर बना ली| जिस कारण मगहर में समाधि और मज़हर साथ साथ है|
संत कबीर जी के दोहे/Kabir Das Quotes in Hindi
दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोए,
जो सुख में सुमिरन करे, तोह दुःख कहे को होए|
(अर्थात: हम सभी परेशान होने पर प्रभु के बारे में सोचते हैं, कभी शांति के समय नहीं| लेकिन अगर हम शांति के दौरान अपनी आस्था रखते हैं, तो कोई परेशानी नहीं होगी।|
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलेया कोए,
जो मन खोजा आपना, तोह मुझसे बुरा न कोए.
(अर्थात: मैं बुरे लूगो को खोजने के लिए निकल पड़ा था और मुझे कोई नहीं मिला|
जब मैंने अंत में अपने अंदर झाँका,तो मुझसे ज्यादा बुरा कोई आदमी नहीं था|
काल करे सो आज कर आज करे सो अब,
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करोगे कब
(अर्थात: कल के कार्यों को आज और आज के कार्यों को अभी समाप्त करें। आप उन्हें कब खत्म करेंगे, अगर दुनिया अगले पल में खत्म हो जाए।|
माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।
भावार्थ: जब कुम्हार बर्तन बनाने के लिए मिटटी को रौंद रहा था, तो मिटटी कुम्हार से कहती है – तू मुझे रौंद रहा है, एक दिन ऐसा आएगा जब तू इसी मिटटी में मिल जाएगा और मैं तुझे रौंदूंगी।
कलम के सिपाही प्रेमचंद की जीवनी
शेयर मार्किट के भगवान वारेन बुफे की जीवनी
धन्यावाद
तो दोस्तों इस आर्टिकल के ज़रिये आपको Kabir Das Biography in Hindi में पड़ने को मिली|
और हम आशा करते है आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा| अगर आपको कुछ भी जानकारी एसी दिखती है जो सही ना हो तो आप कमेंट्स मे हमें बता सकते है| (हमसे संपर्क करे)
हम इस आर्टिकल मे और क्या लिख सकते है आप वह भी बता सकते है जिससे हम आपकी और मदद कर सके|
तो धन्यवाद दोस्तों कॉमेंट्स मे जरुर बताइएगा आप अगला आर्टिकल कीनेके बारे मे पड़ना पसंद करेंगे|
Kabir Das Biography in Hindi
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